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अधा॒ ह्य॑ग्ने॒ क्रतो॑र्भ॒द्रस्य॒ दक्ष॑स्य सा॒धोः। र॒थीर्ऋ॒तस्य॑ बृह॒तो ब॒भूथ॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhā hy agne krator bhadrasya dakṣasya sādhoḥ | rathīr ṛtasya bṛhato babhūtha ||

पद पाठ

अध॑। हि। अ॒ग्ने॒। क्रतोः॑। भ॒द्रस्य॑। दक्ष॑स्य। सा॒धोः। र॒थीः। ऋ॒तस्य॑। बृ॒ह॒तः। ब॒भूथ॑॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:10» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) राजन् ! (हि) जिस कारण अग्नि के सदृश प्रकाशमान आप हैं, इससे (रथीः) बहुत वाहनों से युक्त होते हुए (भद्रस्य) कल्याणकर्त्ता तथा (दक्षस्य) बल (क्रतोः) बुद्धि और (साधोः) उत्तम मार्ग में वर्त्तमान (ऋतस्य) सत्य, न्याय और (बृहतः) बड़े व्यवहार के रक्षक (बभूथ) हूजिये (अध) इसके अनन्तर हम लोगों के राजा हूजिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - राजा को चाहिये कि सम्पूर्ण बल और विज्ञान से सज्जनों का रक्षण और दुष्ट पुरुषों का ताड़न करके सत्यन्याय की उन्नति निरन्तर करे ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! हि त्वं रथीः सन् भद्रस्य दक्षस्य क्रतोः साधोर्ऋतस्य बृहतो रक्षको बभूथाऽधाऽस्माकं राजा भव ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अध) आनन्तर्ये। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (हि) यतः (अग्ने) पावकवत्प्रकाशमान राजन् (क्रतोः) प्रज्ञायाः (भद्रस्य) कल्याणकरस्य (दक्षस्य) बलस्य (साधोः) सन्मार्गस्थस्य (रथीः) बहवो रथा विद्यन्ते यस्य सः (ऋतस्य) सत्यस्य न्यायस्य (बृहतः) महतः (बभूथ) भव ॥२॥
भावार्थभाषाः - राज्ञा सर्वेण बलेन विज्ञानेन साधूनां रक्षणं दुष्टानां ताडनं कृत्वा सत्यस्य न्यायस्योन्नतिः सततं विधेया ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाने संपूर्ण बल व विज्ञान याद्वारे सज्जनांचे रक्षण व दुष्ट पुरुषांचे ताडन करून खऱ्या न्यायाची स्थापना करावी. ॥ २ ॥